ब्यूरो रिपोर्टः शीतकालीन सत्र (winter session) से पहले लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला बोले और उन्होने कहा कि संविधान को लेकर राजनीति करना कतई भी ठीक नही है। ओम बिरला ने कहा कि किसी भी पार्टी या विचारधारा की कोई भी सरकार संविधान की मूल भावना के साथ छेड़छाड़ नहीं कर सकती। उन्होंने कहा कि लोगों के अधिकारों और उनकी आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए समय-समय पर संविधान में बदलाव किए गए हैं।
winter session में बोले ओम बिरला
आज 25 नवम्बर से संसद का शीतकालीन सत्र (winter session) शुरू होने जा रहा है। और इससे पहले लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने सभी संसदीय स़दस्य को संविधान को राजनीति से दूर रखने की नसीहत दी। उन्होंने कहा कि संविधान को लेकर राजनीति करना ठीक नहीं है, क्योंकि यह संविधान का अपमान होगा। उसे राजनीति से दूर रखना चाहिए क्योंकि यह एक सामाजिक दस्तावेज और सामाजिक एवं आर्थिक बदलाव का स्रोत है।
शीतकालीन सत्र (winter session) के शुरु होते ही ओम बिरला ने कहा कि संविधान हमारी ताकत है। यह हमारा सामाजिक दस्तावेज है। इसी संविधान के कारण हम सामाजिक और आर्थिक बदलाव लाए हैं और समाज के वंचित, गरीब तथा पिछड़े लोगों को सम्मान दिया है।
दरअसल आज के इस समय के साथ दुनिया में लोग भारत के संविधान को पढ़ते हैं, और उसकी विचारधारा को समझते हैं और कैसे उस समय हमने बिना किसी भेदभाव के सभी वर्गों, सभी जातियों को वोट देने के अधिकार का प्रयोग किया था। हमारे संविधान की मूल भावना हमें सबको जोड़ने और मिलकर काम करने की शक्ति देती है। इसलिए संविधान को राजनीति के दायरे में नहीं लाना चाहिए।
शीतकालीन सत्र (winter session) में बिरला ने यह भी कहा कि किसी भी पार्टी या विचारधारा की कोई भी सरकार संविधान की मूल भावना के साथ छेड़छाड़ नहीं कर सकती। उन्होंने कहा कि लोगों के अधिकारों और उनकी आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए समय-समय पर संविधान में बदलाव किए गए हैं।
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हालांकि विपक्ष ने लोकसभा चुनाव के दौरान आरोप लगाए थे कि सरकार संविधान के नियम और कानूनों में बदलाव करेगी। और इन्हीं सब आरोपों का वह जवाब दे रहे ओम बिरला ने कहा कि संविधान में बदलाव सामाजिक परिवर्तन के लिए किए गए हैं। और जरुरत पड़ने पर बदलाव होते रहेंगे। उन्होंने कहा, ‘लोगों की आकांक्षाओं और अधिकारों तथा पारदर्शिता बरकरार रखने के लिए संविधान में समय-समय पर बदलाव किए गए हैं। सामाजिक परिवर्तन के लिए भी बदलाव किए गए हैं।
लेकिन किसी भी राजनीतिक दल या किसी सरकार ने संविधान की मूल भावना के साथ छेड़छाड़ नहीं की है। यही कारण है कि न्यायपालिका को समीक्षा करने का अधिकार है ताकि मूल ढांचा बना रहे। इसलिए यहां हमारे देश में किसी भी पार्टी विचारधारा की सरकार संविधान की मूल भावना के साथ कभी छेड़छाड़ नहीं कर सकती।