Muzaffarnagar Me Ravan Ka Putla Banate Huye Muslim Karigar
मुजफ्फरनगर (संवाददाता गौरव चौटाला) : उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर (Muzaffarnagar) जनपद में जहां “आई लव मोहम्मद” और “आई लव महादेव” पोस्टरों को लेकर सामाजिक और धार्मिक बहस चल रही है, वहीं एक मुस्लिम परिवार दशहरे के पर्व पर एकता और सौहार्द की मिसाल पेश कर रहा है।
मुजफ्फरनगर (Muzaffarnagar) के नुमाइश मैदान में इस परिवार की 10 सदस्यीय टीम पिछले एक महीने से दशहरे के लिए रावण, मेघनाथ और कुंभकर्ण के विशालकाय पुतले बना रही है। यह कार्य उनके लिए सिर्फ व्यवसाय नहीं है बल्कि एक पीढ़ियों पुरानी परंपरा और सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक बन चुका है।
पुतलों का भव्य निर्माण और तैयारियां
मुजफ्फरनगर (Muzaffarnagar) में इस बार इस परिवार ने दशहरे के लिए 60 फीट का रावण, 50 फीट का मेघनाथ और 45 फीट का कुंभकर्ण का पुतला बनाने का कार्य लिया है। इन पुतलों को विशेष रूप से आतिशबाजी से सजाया जाएगा और दशहरे के दिन रिमोट कंट्रोल के द्वारा दहन किया जाएगा।
पुतले बनाने का यह कार्य इस परिवार में तीन पीढ़ियों से चल रहा है। इस परंपरा की शुरुआत 1964 में उत्तराखंड के ऋषिकेश से हुई थी और बाद में यह कार्य मुजफ्फरनगर (Muzaffarnagar) में भी जारी रहा। इस कार्य में न केवल परिवार के सदस्य बल्कि अन्य कुशल कारीगर भी योगदान देते हैं।

रफीक कारीगर का अनुभव
रफीक कारीगर, जो इस परिवार के प्रमुख हैं, बताते हैं:
“हमारी यह तीसरी पीढ़ी है। यह कार्य मेरे पापा ने सन 1964 में ऋषिकेश में शुरू किया था। तब से हम लगातार दशहरे पर पुतले बना रहे हैं। मुजफ्फरनगर (Muzaffarnagar) में हमें आठ से दस साल हो गए हैं। पुतले बनाना एक मेहनत वाला काम है जिसमें बांस काटना, कपड़े लगाना और सजावट करना शामिल है। इसमें लगभग डेढ़ महीने का समय लगता है। लेकिन यह हमारे लिए गर्व का विषय है।”
रफीक ने बताया कि इस बार पुतलों में विशेष आकर्षक आतिशबाजी का उपयोग किया गया है ताकि उनका रूप और भी भव्य लगे और यह पर्व अधिक यादगार बन सके।
टीम व परंपरा का महत्व
मुजफ्फरनगर (Muzaffarnagar) में कारीगर रफीक के अनुसार, इस कार्य में लगभग 10 लोग शामिल हैं, जिनमें उनके परिवार के चार सदस्य और बाकी बाहरी कारीगर हैं। इस टीम में सबसे पुराने कारीगर का नाम ओमप्रकाश है, जो उनके पापा के समय से इस कार्य में जुड़ा हुआ है।
यह सामूहिक प्रयास न केवल इस परिवार की पहचान है बल्कि मुजफ्फरनगर में सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक बन चुका है। यह परंपरा यह संदेश देती है कि कला और संस्कृति धर्म या समुदाय की सीमाओं से परे होती है और समाज को एक सूत्र में बांध सकती है।
मुजफ्फरनगर (Muzaffarnagar) में यह मुस्लिम परिवार दशहरे के पर्व पर पुतले बनाने की तीन पीढ़ियों पुरानी परंपरा को निभाकर एकता और सांप्रदायिक सौहार्द का संदेश दे रहा है। यह परंपरा साबित करती है कि त्योहार सिर्फ धार्मिक उत्सव नहीं होते, बल्कि वे समाज को जोड़ने और भाईचारे को मजबूत करने का माध्यम भी हैं।
मुजफ्फरनगर (Muzaffarnagar) में इस साल दशहरे पर बन रहे विशालकाय पुतले न केवल उत्सव की भव्यता को बढ़ाएंगे बल्कि मुजफ्फरनगर (Muzaffarnagar) के लिए भाईचारे और सांस्कृतिक सौहार्द की एक यादगार मिसाल भी बनेंगे।
सांस्कृतिक विरासत की चमक
मुजफ्फरनगर (Muzaffarnagar) के इस मुस्लिम परिवार की यह परंपरा सिर्फ दशहरे के पुतले बनाने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा बन चुकी है। रफीक कारीगर बताते हैं कि यह कार्य उनकी पीढ़ियों की पहचान है और इसे आगे भी बनाये रखना उनका ध्येय है। उन्होंने कहा कि पुतले बनाना केवल एक कला नहीं है, बल्कि यह उनके समुदाय और पूरे शहर के लिए एक संदेश है कि त्योहारों में भाईचारा और सहयोग सबसे बड़ा पर्व होता है।
भाईचारे का प्रतीक
मुजफ्फरनगर (Muzaffarnagar) के लोग इस परंपरा को सिर्फ एक सांस्कृतिक आयोजन नहीं बल्कि भाईचारे और धार्मिक सौहार्द का प्रतीक मानते हैं। दशहरे के दिन जब हजारों लोग इन पुतलों के दहन को देखेंगे, तो यह सिर्फ रामलीला का दृश्य नहीं होगा, बल्कि यह संदेश देगा कि भले ही धर्म या जाति अलग हो, लेकिन पर्व और परंपरा सभी को एक साथ जोड़ सकते हैं। इस मुस्लिम परिवार की मेहनत और योगदान इस बात का जीवंत उदाहरण है कि कला और संस्कृति समाज में सद्भाव और एकता की सबसे मजबूत नींव होती हैं।